मूत्र पथ का संक्रमण
मूत्र पथ का संक्रमण एक सामान्य समस्या है।
औरत को अपनी ज़िन्दगी में मूत्र संक्रमण की ५०% संभावना है।
यह काफ़ी परेशानदायक है और कभी कभी ज़िन्दगी के लिये खतरा बन सकता है।
मूत्र मार्ग (यूरेथरा) छोटा होने के वजह से और यौन क्रिया के दौरान चोट लगने के कारण भी पुरुषों की तुलना में महिलओं में मूत्र पथ का संक्रमण अधिक सम्भव है।
आम लोगों में और डॉक्टरों में भी मूत्र पथ के संक्रमण के बारे में काफी गलतफहमी है।
मूत्र पथ में जन्तुओं के पनपने (कॉलोनी) को बनाना मूत्र पथ के संक्रमण कहा जाता है।
मूत्र संग्रह की प्रणाली (गुर्दे), यूरेटर (गुर्दे से मूत्राशय तक जानेवाली (ट्यूब) नली), मूत्राशय, और अंत में मूत्र मार्ग (यूरेथरा) - ये मूत्र पथ के हिस्से होते हैं।
गुर्दे और यूरेटर मूत्र पथ के ऊपरी हिस्से हैं।
मूत्राशय और यूरेथरा मूत्र पथ के निचले हिस्से हैं।
मूत्र पथ का अंतिम भाग जो हवा के संपर्क में है – यहाँ तक मूत्र पथ जन्तु-विहीन है।
जन्तु जब मूत्राशय और गुर्दे की ओर बढते हैं, तब संक्रमण होता है।
पुरुषों में या तो जन्म से मूत्राशय की विकृति के कारण पहले साल में ही या साठ साल के बाद जब प्रोस्टेट ग्रंथि
मूत्र मार्ग में अवरोध करती है, मूत्र पथ का संक्रमण हो सकता है।
यौन सक्रिय अवधि में मूत्र पथ का संक्रमण ज़्यादातर महिलाओं में पाया जानेवाला रोग है।
मूत्र पथ के संक्रमण के कारण
मूत्र पथ का संक्रमण समुदाय-प्राप्त हो सकता है या अस्पताल में मूत्र पथ में उपयोग किये जानेवाले उपकरण (मूत्राशय कैथीटेराइजेशन) के जरिये भी प्राप्त हो सकता है।
समुदाय-प्राप्त संक्रमण बैक्टीरिया के द्वारा होते है।
इनमें सबसे सामान्य जन्तु ‘ई. कोलई’ कहा जाता है।
प्रतिरोधी बैक्टीरिया और फंगस (कवक) से अस्पताल-प्राप्त संक्रमण हो सकते हैं।
मूत्र पथ के संक्रमण के लक्षण
पीड़ायुक्त पेशाब (डायसुरिया) और पेशाब करने की आवृत्ति में बढौती — ये मूत्र पथ के संक्रमण के बिशिष्ट लक्षण हैं।
यह मूत्राशय और मूत्र नलि (यूरेथरा) में जलन होने का नतीज़ा है।
सामान्यतः इन लक्षणों की अनुपस्थिति में मूत्र पथ के संक्रमण का निदान नहीं करना चाहिये।
पेशाब के रंग परिवर्तन और सिर्फ मूत्र में रक्त की मौजूदगी (बिना डायसुरिया के) मूत्र पथ के संक्रमण का संकेत नहीं करते।
ऊपरी मूत्र पथ संक्रमण में बुखार और कमर दर्द होते हैं।
सिर्फ पेट के निचले भाग में दर्द और बार-बार पेशाब करना ही निचले मूत्र पथ के संक्रमण का संकेत करते हैं।
अगर रोग के कोई लक्षण बिना, प्रयोगशाला में जन्तु मूत्र में विकसित होता है, उसे अलक्षणिक बैक्टीरियूरिया कहते हैं।
यह एक प्रयोगशाला परीक्षण है और दुर्लभ स्थितियों के अलावा चिकित्सा की कोई ज़रूरत नहीं होती।
डायसुरिया या दर्दनाक मूत्र विसर्जन मूत्र पथ के संक्रमण के अभाव में भी हो सकता है जैसे कि यूरेथरा को चोट लगने पर या यूरेथरा की सूजन से। इसे ‘यूरेथ्रल सिन्ड्रोम’ कहते हैं।
ऊपरी तथा निचले मूत्र पथ संक्रमण और ‘यूरेथ्रल सिन्ड्रोम’ के बीच अंतर पहचानना चिकित्सा क्रम तय करने के लिये ज़रूरी है।
रोगनिर्णय
दर असल रोगनिर्णय लक्षणों से किया जाता है जैसे कि पीड़ायुक्त पेशाब (डायसुरिया) और पेशाब करने की आवृत्ति में बढौती।
प्रयोगशाला में परीक्षण सिर्फ रोगनिर्णय की पुष्टीकरण के लिये है और सही दवाई चुनने में मदद करता है।
मूत्र रिपोर्टों की व्याख्या
अगर मूत्र में मवाद कोशिकायें (pus cells) मौजूद हो, तब यह मूत्र पथ में सुजन का संकेत करता है।
संक्रमण का यह एक सामान्यतम कारण है।
लेकिन, पथरी, गांठ (ट्यूमर), नेफ्रैटिस (गुर्दे की सुजन) होने पर भी मूत्र में मवाद कोशिकाओं (pus cells) का उत्पादन हो सकता है।
आल्बयुमिन की मौजूदगी मूत्र पथ के संक्रमण का निर्णय लेने के लिये सीधा लक्षण नहीं है।
यह आमतौर पर गुर्दो की बीमारी का संकेत है।
एपिथीलियल कोशिकाओं (epithelial cells) की मौजूदगी मूत्र का नमूना लेते समय संदूषण का संकेत करता है।
मूत्र के नमूने का संग्रह करने का सही तरीका: गुप्तांग पानी से साफ करने के बाद, शुरुआत के मूत्र की कुछ मात्रा छोड़ देनी चाहिये। इसके बाद मूत्र का संग्रह एक साफ / स्टेरिलाइज किया हुआ (जीवाणुरहित किया हुआ) पात्र में करना चाहिये।
इसे मध्य-धारा नमूना या ‘क्लीन कैच’ नमूना कहते हैं।
इसे फौरन प्रयोगशाला में पहुँचाना चाहिये।
मूत्र की अभिवृद्धि (कल्चर)
मूत्र के दोषपूर्ण संग्रह की वजह से, इस परीक्षण में बहुत सारी गलतियाँ होती हैं।
मूत्र की अभिवृद्धि (कल्चर) का परिणाम देते समय, जन्तुओं की सामुहिक गिनती देना अनिवार्य है।
केवल १०-५ से ज्यादा कॉलोनी गिनती ही महत्वपूर्ण मानी जाती है।
कॉलोनी गिनती के बिना जो मूत्र अभिवृद्धि (कल्चर) रिपोर्ट दिये जाते हैं उनसे सचेत रहें।
मूत्र अभिवृद्धि (कल्चर) रिपोर्ट में जीवाणओं (बैक्टीरिया) के प्रकार के अलावा, उन दवाओं की सूची भी दी जानी चाहिये, जिनमें जीवाणुरोधी संवेदनाशीलता है।
इससे चिकित्सा के लिये दवाइयों का निर्णय करने में मदद मिलती है।
जिस दवा में कम से कम विषाक्तता हो, संकीर्ण दायरे में असर देने की क्षमता हो, और जो ऊतक में घुस सके, ऐसी दवाई को चुनना चाहिये।
अन्य जांच
निम्नलिखित खास स्थितियों में अल्ट्रासाउण्ड, एक्स-रे, सिस्टोस्कोपी जैसे विस्तृत जांच की ज़रूरत होती है।
- सभी पुरुष जिन्हें मूत्र पथ का संक्रमण हो
- बाल्यावस्था की लडकियाँ या ६० वर्ष से ऊपर की महिलायें
- यौन सक्रिय महिलायें, जिन्हें मूत्र पथ का संक्रमण बार-बार होता हो
मूत्र पथ के संक्रमण की चिकित्सा
संक्रमण समुदाय-प्राप्त है या ऊपरी मूत्र पथ का है या निचले मूत्र पथ का है – चिकित्सा इस पर निर्भर करती है।
निचले मूत्र पथ का संक्रमण जो समुदाय प्राप्त हो, इसकी चिकित्सा एक मात्रा (डोज़) एंटिबायोटिक सहित सामान्य दवाओं से कर सकते है।
अन्य संक्रमणों की चिकित्सा के लिये लम्बी अवधि तक दिये जानेवाले एंटिबायोटिक दवाओं की ज़रूरत होती है।
यौन सक्रिय महिलाओं में मूत्र पथ के संक्रमण की रोक-थाम
- अच्छी व्यक्तिगत स्वच्छता तथा संभोग के बाद पेशाब करना
- संभोग के बाद कम मात्रा (डोज़) की एंटिबायोटिक लेना
- दीर्घकालीन रात में लिये जानेवाला कम मात्रा (डोज़) की एंटिबायोटिक लेना
मूत्र पथ के संक्रमण में पानी की भूमिका
बडी मात्रा में पानी पीने से मूत्र पथ में जलन कम हो सकता है।
मगर, इससे संक्रमण जड़ से समाप्त नहीं किया जा सकता।
क्षारीय मिश्रण की भूमिका
क्षाक्रीय मिश्रण भी लक्षणानुसार मूत्र पथ में जलन को कम कर सकता है।
मगर इससे भी संक्रमण को जड़ से समाप्त नहीं किया जा सकता।
आहार
आहार में अत्यधिक पशु प्रोटीन होने से मूत्र अम्लीय बनता है। इससे मूत्र पथ में जलन बढ सकती है।
सब्जियाँ मूत्र में अम्लीयता को कम करके मूत्र को क्षारीय बनाती हैं।
प्रमुखताएँ
- मूत्र पथ का संक्रमण एक नैदानिक निदान (क्लिनिकल डायगनोसिस) है।
प्रयोगशाला सिर्फ पुष्टीकरण के लिये इस्तेमाल किया जाता है।
अगर लक्षण मौजूद न हो, खास स्थितियों के अलावा मूत्र पथ के संक्रमण का इलाज नहीं करना चाहिये।
- प्रयोगशाला के परीक्षण में बहुत सारी गल्तियाँ पायी जाती हैं।
- ऊपरी तथा निचले मूत्र पथ संक्रमण के बीच अंतर पहचानना।
- उनकी जाँच करना जो कमजोर नहीं हों (यौन सक्रिय महिलाओं के अलावा)
- सरल उपायों के जरिये मूत्र पथ संक्रमण को होने से रोकना।
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