स्पष्टीकरण
पिछले दस वर्षों में गुर्दे के रोगों में उल्लेखनिय बढ़ौती हुई है। इसके दो वजह हैं — एक, रोग को पता लगाने में बढ़ती तत्परता और दूसरा, रोग की सम्भावित वृद्धि। रोग की वृद्धि के कुछ संभव कारण हैं: बढती हुई मधुमेह की घटनायें, उच्च रक्तचाप, शारीरिक व्यायाम की कमी, उन दवाओं का उपयोग जो गुर्दों के लिये विषाक्त है।
गुर्दों के मूल कार्य
- शरीर के आंतरिक वातावरण (बदन में pH, पानी तथा इलेक्ट्रोलाइट की मात्रा) को बनाए रखना ताकि बदन की हर एक कोशिका और अंग सही ढंग से काम कर सके। इसलिये ही जब गुर्दे रोगग्रस्त होते हैं, कभी कभी इसके लक्षण ओर संकेत विभिन्न अंगों में दर्शित होते हैं।
- चयापचय के अपशिष्ट उत्पादों (waste products of metabolism) और दवाओं को शरीर से विसर्जित करना। यह भी गुर्दों का बहुत ही महत्वपूर्ण कार्य है। इसी वजह से गुर्दे रोगियों को काफ़ी सावधानी के साथ दवाई देना चाहिये।
- उन हार्मोन्स का उत्पादन जो हड्डी विकास के लिये जिम्मेदार हैं (विटामिन – डी), अस्थिमज्जा (bone marrow) –ईरिथ्रोपोलेटिन द्वारा रक्त उत्पादन और रेनिन – जो रक्तचाप को नियन्त्रण में रखते है।
गुर्दे की बीमारियों के प्रकार – तीक्ष्ण तथा जीर्ण
- तीक्ष्ण - इसका मतलब है रक्त की आपूर्ति में कमी होने से अचानक गुर्दे की कार्य करने की क्षमता कम हो जाना। इसके अनेक कारण हो सकते हैं जैसे कि गेस्ट्रोएन्टेरैटिस के बाद निर्जलीकरण, दिल का दौरा, बदन से बाहर रक्त का बहाव से खून की कमी, इत्यादि। अगर मूल कारण को तुरंत नहीं सुधारा तो मरीज़ मर भी सकता है । इसके विपरीत, अगर मूल कारण को तुरंत सुधारा जाय तो मरीज़ पूरी तरह ठीक हो सकता है और अस्थायी डायलसिस की ज़रूरत हो सकती है।
- जीर्ण - प्रौढ और बुजुर्गों में जीर्ण गुर्दा रोग का सबसे महत्वपूर्ण कारण मधुमेह है। उच्च रक्तचाप भी एक मुख्य कारण है और मधुमेह के साथ मिलकर एक हानिकारक परिणाम दे सकता है। ये दोनों अवस्थाएं धीरे धीरे कई सालों के बाद गुर्दों को प्रभावित करती हैं।
गुर्दों के ९०% बिगड़ने तक हमारा शरीर अनुकूलन कर सकता है, इसलिये मरीज़ों में रोग के कोई लक्षण दिखाई नहीं देते। रोग की जाँच प्रयोगशाला में मूत्र और रक्त के परीक्षण से होती है। एल्ब्युमिन का रिसाव गुर्दा रोग की प्रथम चेतावनी है। इसके बाद रक्त में यूरिया और क्रियेटिनिन की वृद्धि गुर्दा रोग की तीव्रता का संकेत करता है। अफसोस की बात यह है कि बहुत सारे मरीज़ इसी अवस्था में पहचाने जाते हैं और रोग की शुरुआत में नहीं। अगर आल्बयुमिन रिसाव में ही रोग पहचाना जाता है तो बहुत सारे सुधारात्मक उपाय किये जा सकते हैं। मधुमेह रोगी में रेटिनोपैथी की वजह से दृष्टि कमज़ोर होना भी गुर्दा रोग होने की संभावना का एक मुख्य संकेत है।
आजकल दर्द निवारक दवाओं, ट़ानिक, बिना अध्ययन के तैयार की हुई वैकल्पिक या देशी दवाइयाँ इत्यादि का अत्यधिक सेवन भी काफी प्रचलित है। समय की लम्बी अवधि में ये दवायें गुर्दों को काफ़ी क्षति पहुँचाती हैं। यह कहने कि ज़रूरत नहीं है कि मरीज़ों में अक्सर रोग का कोई लक्षण नहीं दिखता और प्रयोगशाला मूल्यांकन द्वारा ही रोग का पता चलता है।
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