जीर्ण गुर्दा रोग के खिलाफ मुहीम
डा. राजन रविचन्द्रन
MD, MNAMS, FRCP (Edin), FACP (USA),
डायरेक्टर,
MIOT इन्स्टिट्यूट़ आफ नेफरालजि
MIOT अस्पताल,
चेन्नेई ६०००८९ |
चेयरमेन
सेपियन्स हेल्थ फाउंडेशन
नं ७/२३, तीसरा मेन रास्ता,
कोट्टूर गार्डन्स
चेन्नेई ६०००८५ |
डा.राजन रविचन्द्रन ने, मुम्बई विश्व विद्यालय से दवा और सर्जरी शाखाओं में प्रथम स्थान अर्जित किया और अनेक पुरस्कार एवं स्वर्ण पदक हासिल किये। ऐसी प्रतिभाशाली शैक्षिक अवधि के बाद १९८५ में उन्होंने चेन्नई में अपना पेशा शुरु किया। १९८५ से १९८९ तक वे चेन्नई अडयार में वोलन्टरि हेल्थ सेर्विसेस (VHS) के नेफ्रालॉजी (गुर्दा-संबन्धित) विभाग के प्रमुख थे। यहाँ सभी मरीजों का निःशुल्क इलाज किया जाता था। इस विभाग की सुविधा का विस्तार किया गया और उनके निर्देशन में नि:शुल्क गुर्दा प्रतिरोपण कार्यक्रम (free kidney transplantation programme) शुरु किया गया। महाबलिपुरम के आसपास के गाँवों में रहनेवाले कई मरीजों के लिये तो यह एक वरदान साबित हुआ।
१९८९ में उन्होंने चेन्नई के विजया हेल्थ सेन्टर में ‘मद्रास इन्स्टिट्यूट ऑफ नेफरालॉजी’ शुरु किया। २०,००० से अधिक गुर्दा रोग के मरीज, जो ना केवल भारत के कई प्रदेशों से बल्कि श्रीलंका, मालदीव, बांगलादेश जैसे हमारे पडोसी देशों से भी इस संस्थान में इलाज करवाने आये।
१००० से भी ज्यादा गुर्दे प्रत्यारोपण किये गये हैं। हर महीने १००० से १५०० हेमोडायलसिस किये जा रहे हैं और करीब २५ प्रतिशत मरीजों को निः शुल्क परामर्श और चिकित्सा सलाह दी जाती है।
१९९३ में पोस्ट ग्रेडुएट प्रोग्राम शुरु किया गया और बहुत सारे डॉक्टरों को प्रशिक्षण दिया गया जो देश व विदेश में कार्यरत हैं।
१९९७ में डॉ. रविचन्द्रन टोक्यो महिला मेडिकल कालेज में आगंतुक प्राध्यापक (Visiting Professor) के रूप में नियुक्त हुए।
१९९७ में गरीब मरीजों को बडे पैमाने पर मदद करने के लिए ‘बालाजी मेडिकल़ा अण्ड एजुकेशनल ट्रस्ट’ शुरु किया गया। मरीजों और अन्य शुभ-चिन्तकों से धन एकत्रित किया गया और आर्थिक अनुदान (सब्सिडि) द्वारा बड़ी संख्या में डायलसिस की सुविधा दी जा रही है। मुफ्त दवाइयाँ वितरित की जा रही हैं। क्योंकि गुर्दे की बीमारी में रोकथाम सबसे महत्वपूर्ण है, इसलिये नि:शुल्क चिकित्सा शिविरों और जागरुकता व्याख्यान नियमित रूप से आयोजित किये जा रहे हैं।
१५ मार्च २००९ को, बालाजी ट्रस्ट की १२वी वर्षगाँठ के अवसर पर ‘रोग शीघ्र पता करने का कार्यक्रम’ के लिये एक परियोजना की शुरुआत की गयी। प्रारम्भिक अवस्था में ‘रोग का शीघ्र पता करने का कार्यक्रम’ आबादी के बड़े हिस्से के लिये जीर्ण गुर्दा रोग का पता लगाने, हस्तक्षेप करने, और निगरानी रखने के लिये है। यह संदेश फैलाने के लिये सभी उपलब्ध जनसंपर्क माध्यम जैसे प्रिंट, टेलिविजन, इनटरनेट, फिल्मे, इत्यादि का व्यापक तरीके से इस्तेमाल किये जायेंगे।
मई २००८ में उन्हें FACP (USA) और जून २००८ में FRCP (EDIN) से सम्मानित किया गया। जुलाई २००८ में उन्होंने ‘मियाट इन्सटिट्यूट आफ नेफरालजी की शुरुआत की, जो १०० बिस्तरोंवाली गुर्दा रोग के मरीजों की चिकित्सा के लिये एक विशिष्ट सुविधा है। उन्होंने कई राष्ट्रीय एवं अन्तरराष्ट्रीय प्रकाशन किये हैं।
१९९६ से उन्होंने आय.आय.टी, चेन्नई के साथ सक्रिय सहयोग किया है। १९९७ में तीव्र डायलसिस मशीन का निर्माण किया गया। यह मशीन महत्वपूर्ण रोगियों में फेफडों संबंधी सूजन से द्रव्य पदार्थ निकालने के लिये इस्तेमाल की जाती है। यह मशीन एक नूतन विचार के आधार पर बनी है जिसमें मशीन बिना पानी के काम करती है। यह मशीन वहनीय (पोर्टेबल) है और इसे एक जगह से दूसरी जगह आसानी से ले जा सकते हैं। यह उपयोगकर्ता के अनुकूल है और इसे चलाने के लिये नेफरॉलजिस्ट की ज्ञरूरत नहीं होती है। यह मशीन काफी किफायती है और सारे देश में इसका उपयोग किया जा सकता है। छोटे छोटे नर्सिंग होम में भी जो मरीज फेफडों संबंधी सूजन रोग से गम्भीर परिस्थिति में हैं, उनकी हालत स्थिर करने के लिये इस्तेमाल की जा सकती है। यह मशीन चेन्नई के कई अस्पतालों में सफलतापूर्वक इस्तेमाल की जा रही है। अब व्यापारिक पैमाने पर इस मशीन का उत्पादन होनेवाला है और सारे देश में यह उपलब्ध होगी।
कई अन्य अनुसंधान परियोजनाओं को आय.आय.टी चेन्नई के सहयोग से शुरु किया गया है। इनमें सबसे सफल परियोजना है ‘पोलिएलाईलएमीन फास्फेट बाईन्डर’। यह मुख द्वारा लेनेवाली एक गैर कैल्शियम राल (रेज़िन) है जो जीर्ण गुर्दा रोगियों को फ़ास्फ़रोस निकालने में मदद करता है। इससे इन मरीज़ों में कोरोनरी (रक्त नलिकायें संबन्धित) घटनायें कम हो सकती हैं। यह दवा प्रयोगशाला से औषध बनानेवाले उद्योग तक पहुँचाई गई है और सफालतापूर्वक लाखों मरीजों को यह फायदेमन्द साबित हो रही है। मौखिक रूप से रेजिन द्वारा पदार्थ निकालने की यह संकल्पना बदन से अन्य कई पदार्थों को निकालने के लिये भी विकसित की जा रही है।
|